उत्तरी आयरलैण्ड और आयरिश गणराज्य अभी भी दो अस्तित्व वाले है
”साम्राज्यवादियों ने मेरे स्वदेश की भांति तुम्हारे देश को भी जाते -जाते बांट दिया।”
एनी बेसेन्ट, भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी
आल्फ्रेड वेब्स 1894 में कांग्रेस के सभापति थे
के. विक्रम राव
प्रत्येक स्वाधीनताप्रेमी भारतीय को उत्तरी आयरलैंड राष्ट्र में क्रान्तिकारी शिन फेइन पार्टी (मायने ”हम—हमलोग”) द्वारा विधानसभाई बहुमत (शनिवार 7 मई 2022) जीतने से नैसर्गिक आह्लाद होना सरल है। स्वाभाविक है। गत 101 वर्षों में पहली बार ऐसे चुनावी परिणाम आये हैं। दोनों (भारत तथा आयरिश) ब्रिटिश उपनिवेश रहे। दोनों राष्ट्रों को आजादी देने की बेला पर ब्रिटिशराज ने विभाजित कर डाला था। इसकी विभीषिका आज तक दोनों भुगत रहे हैं। आयरलैण्ड तो पांच सदियों (1541 से) बादशाह हेनरी अष्टम के काल से तथा भारत 1857 से मलिका विक्टोरिया द्वारा व्यापारी ईस्ट इंडिया कम्पनी से सत्ता लेने के समय से परतंत्र रहा। किन्तु उत्तरी आयरलैण्ड और आयरिश गणराज्य अभी भी दो अस्तित्व वाले है। विभाजित। इस त्रासद तथ्य को मशहूर आयरिश नाटकाकार जार्ज बर्नार्ड शाह ने आजाद भारत के प्रथम प्रधानमंत्री (जवाहरलाल नेहरु) को पत्र में लिखा था : ”साम्राज्यवादियों ने मेरे स्वदेश की भांति तुम्हारे देश को भी जाते—जाते बांट दिया।” (”बंच आफ ओल्ड लेटर्स”, आर्क्सफोड प्रकाशक)।
यूं प्रमुख आयरिश लोग जो भारतीय जनसंघर्ष से जुड़े रहे उनमें सिस्टर निवेदिता थीं जो भारतीय कला, इतिहास तथा कांग्रेस आंदोलन में क्रियाशील रहीं। दूसरी थीं एनी बेसेन्ट। उन्होंने भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस अधिवेशन की अध्यक्षता की थी। आल्फ्रेड वेब्स 1894 में कांग्रेस के सभापति थे। कवि—युगल कजिन्स तथा मार्गरेट नोबल ने रवीन्द्रनाथ ठाकुर की रचना जनगणमन का अंग्रेजी में रुपांतरण किया था। लेकिन आयरलैण्ड के तृतीय राष्ट्रपति तथा विद्रोही आयरिश रिपब्लिकन आर्मी से संबद्ध रहे ईमन डि वेलेरा सर्वाधिक मशहूर भारतमित्र रहे। ब्रिटिश जेल गांधी जी की भांति इस आंदोलनकारी का दूसरा घर बन गया था। वे ”शिन फेन” दल के संस्थापक रहें। एक बार ब्रिटिश सरकार द्वारा फांसी दिये जाने से बच गये क्योंकि वे न्यूयार्क (अमेरिका में 14 अक्टूबर 1882) जन्मे थे। नागरिकता अलग थी।