UP STF के गौरवपूर्ण 24 साल (गठन 04 मई 1998)
इस ‘डॉन’ को पकड़ने के लिए बनी थी यूपी एसटीएफ टीम, यहां पढ़िए इसकी खूनी कहानी
यूपी एसटीएफ के स्थापना दिवस पर यूपी के उस समय के सबसे बड़े माफिया डॉन श्रीप्रकाश शुक्ल की कहानी
श्रीप्रकाश शुक्ला के आतंक के अंत के लिए ही 4 मई 1998 को हुआ था यूपी एसटीएफ का गठन
लखनऊ। श्रीप्रकाश शुक्ला यूपी में 90 के दशक का डॉन था. अखबारों के पन्ने हर रोज उसी की सुर्खियों से रंगे होते. यूपी पुलिस हैरान-परेशान थी। नाम पता था लेकिन उसकी कोई तस्वीर पुलिस के पास नहीं थी। बिजनेसमैन से उगाही, किडनैपिंग, कत्ल, डकैती, पूरब से लेकर पश्चिम तक रेलवे के ठेके पर एकछत्र राज। बस यही उसका पेशा था, और इसके बीच जो भी आया उसने उसे मारने में जरा भी देरी नहीं की. लिहाजा लोग तो लोग पुलिस तक उससे डरती थी. आखिरकार, यूपी पुलिस के एसटीएफ ने एक मुठभेड़ में मार गिराया.। श्रीप्रकाश के साथ पुलिस का पहला एनकाउंटर 9 सितंबर 1997 को हुआ। पुलिस को खबर मिली कि श्रीप्रकाश अपने तीन साथियों के साथ सैलून में बाल कटवाने लखनऊ के जनपथ मार्केट में आने वाला था. पुलिस ने चारों तरफ घेराबंदी कर दी. लेकिन यह ऑपरेशन ना सिर्फ फेल हो गया बल्कि पुलिस का एक जवान भी शहीद हो गया। इस एनकाउंटर के बाद श्रीप्रकाश शुक्ला की दहशत पूरे यूपी में और ज्यादा बढ़ गई।
यूपी एसटीएफ का गठन
लखनऊ स्थित सचिवालय में यूपी के मुख्यमंत्री, गृहमंत्री और डीजीपी की एक बैठक हुई। इसमें अपराधियों से निपटने के लिए स्पेशल फोर्स बनाने की योजना तैयार हुई। 4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने राज्य पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को छांट कर स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) बनाई. इस फोर्स का पहला टास्क था- श्रीप्रकाश शुक्ला, जिंदा या मुर्दा।
सादी वर्दी में तैनात एके 47 से लैस एसटीएफ के जवानों ने लखनऊ से गाजियाबाद, गाजियाबाद से बिहार, कलकत्ता, जयपुर तक छापेमारी तब जाकर श्रीप्रकाश शुक्ला की तस्वीर पुलिस के हाथ लगी। इधर, एसटीएफ श्रीप्रकाश की खाक छान रही थी और उधर श्रीप्रकाश शुक्ला अपने करियर की सबसे बड़ी वारदात को अंजाम देने यूपी से निकल कर पटना पहुंच चुका था। श्रीप्रकाश शुक्ला ने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी हॉस्पिटल के बाहर बिहार सरकार के तत्कालीन मंत्री बृज बिहारी प्रसाद की गोली मारकर हत्या कर दी। मंत्री की हत्या उस वक्त की गई जब उनके साथ सिक्योरिटी गार्ड मौजूद थे। वो अपनी लाल बत्ती की कार से उतरे ही थे कि एके 47 से लैस 4 बदमाशों ने उनपर फायरिंग शुरु कर दी और वहां से फरार हो गए। इस कत्ल के साथ ही श्रीप्रकाश ने साफ कर दिया था कि अब पूरब से पश्चिम तक रेलवे के ठेकों पर उसी का एक छत्र राज है। बिहार के मंत्री के कत्ल का मामला अभी ठंडा भी नहीं हुआ था कि तभी यूपी पुलिस को एक ऐसी खबर मिली जिससे पुलिस के हाथ-पांव फूल गए। श्रीप्रकाश शुक्ला ने यूपी के तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की सुपारी ले ली थी. 6 करोड़ रुपये में सीएम की सुपारी लेने की खबर एसटीएफ के लिए बम गिरने जैसी थी।
एसटीएफ हरकत में आई और उसने तय भी कर लिया कि अब किसी भी हालत में श्रीप्रकाश शुक्ला का पकड़ा जाना जरूरी है। एसटीएफ को पता चला कि श्रीप्रकाश दिल्ली में अपनी किसी गर्लफ्रेंड से मोबाइल पर बातें करता है। एसटीएफ ने उसके मोबाइल को सर्विलांस पर ले लिया. लेकिन श्रीप्रकाश को शक हो गया। उसने मोबाइल की जगह पीसीओ से बात करना शुरू कर दिया। लेकिन उसे यह नहीं पता था कि पुलिस ने उसकी गर्लफ्रेंड के नंबर को भी सर्विलांस पर रखा है। सर्विलांस से पता चला कि जिस पीसीओ से श्रीप्रकाश कॉल कर रहा है वो गाजियाबाद के इंदिरापुरम इलाके में है। खबर मिलते ही यूपी एसटीएफ की टीम फौरन दिल्ली के लिए रवाना हो जाती है। एसटीएफ किसी भी कीमत पर ये मौका गंवाना नहीं चाहती थी।
23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को खबर मिलती है कि श्रीप्रकाश शुक्ला दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है। श्रीप्रकाश शुक्ला की कार जैसे ही वसुंधरा इन्क्लेव पार करती है, अरुण कुमार सहित एसटीएफ की टीम उसका पीछा शुरू कर देती है। उस वक्त श्रीप्रकाश शुक्ला को जरा भी शक नहीं हुआ था कि एसटीएफ उसका पीछा कर रही है। उसकी कार जैसे ही इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, मौका मिलते ही एसटीएफ की टीम ने अचानक श्रीप्रकाश की कार को ओवरटेक कर उसका रास्ता रोक दिया। पुलिस ने पहले श्रीप्रकाश को सरेंडर करने को कहा लेकिन वो नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश मारा गया। इसी के साथ यूपी एसटीएफ ने अपने जिस टास्क को चुनौती माना था और जिस लिए उसका गठन हुआ था उसको सिद्ध कर दिया था।
पढ़िए इसकी खूनी कहानी
90 के दशक में श्रीप्रकाश शुक्ला के नाम से यूपी बिहार के लोग थरथर कांपते थे। लोग इसे शार्प शूटर के नाम से जानते थे। 25-26 साल के इस डॉन से पुलिस के साथ अपराधी भी खौफ खाते थे। यह वह दौर था जब लोग देशी कट्टा से गुंडागर्दी करते थे, ऐसे समय में श्रीप्रकाश के पास एके-47 थी। बता दें कि इस डॉन को पकड़ने के लिए ही यूपी में एसटीएफ का गठन हुआ था। बता दें कि श्रीप्रकाश शुक्ला का जन्म गोरखपुर के मामखोर गांव में हुआ था। उसके पिता एक स्कूल में शिक्षक थे। 1993 में श्रीप्रकाश शुक्ला की बहन को देखकर किसी ने छेड़खानी कर दी थी, उसने उस शख्स को बीच बाजार गोली मार दी थी। 20 साल की उम्र में श्रीप्रकाश ने यह पहला अपराध किया था। बताया जाता है कि इस कांड के बाद वह बैंकॉक भाग गया, वहां से वापस देश में आने के बाद उसने मोकामा (बिहार) का रुख किया और सूबे के सूरजभान गैंग में शामिल हो गया। आतंक का दूसरा नाम श्रीप्रकाश शुक्ला था। इस बात से अंदाजा आप लगा सकते हैं कि साल 1997 में लखनऊ में बाहुबली राजनेता वीरेंद्र शाही को उसने दिनदहाड़े मौत के घाट उतार दिया था। इसके बाद तो यूपी में श्रीप्रकाश शुक्ला का आतंक कायम हो गया। यही नहीं श्रीप्रकाश ने 13 जून 1998 को पटना स्थित इंदिरा गांधी अस्पताल के बाहर बिहार सरकार के मंत्री बृज बिहारी प्रसाद को उनके सुरक्षाकर्मियों के सामने ही गोलियों से भून दिया था। उसने इस घटना में एके-47 राइफल का प्रयोग कर सनसनी फैला दी थी। इसके बाद 4 मई 1998 को यूपी पुलिस के तत्कालीन एडीजी अजयराज शर्मा ने राज्य पुलिस के बेहतरीन 50 जवानों को चुनकर स्पेशल टास्क फोर्स (एसटीएफ) बनाई। इस फोर्स का पहला टास्क श्रीप्रकाश शुक्ला को जिंदा या मुर्दा पकड़ना था। बताया जाता है कि श्रीप्रकाश उस समय सूबे के मुख्यमंत्री कल्याण सिंह की हत्या की सुपारी (ठेका) ले ली थी। यह सौदा 5 करोड़ में तय हुआ था। उस समय श्रीप्रकाश शुक्ला की एक प्रेमिका भी थी जो दिल्ली में रहती थी। श्रीप्रकाश उससे लगातार फोन पर बात करता था। एसटीएफ को इस बात की जानकारी मिल गई थी। वे मोबाइल सर्विलांस की मदद से श्रीप्रकाश के करीब आ गए थे। इस बीच 23 सितंबर 1998 को एसटीएफ के प्रभारी अरुण कुमार को सूचना मिली कि श्रीप्रकाश दिल्ली से गाजियाबाद की तरफ आ रहा है। जैसे उसकी कार इंदिरापुरम के सुनसान इलाके में दाखिल हुई, एसटीएफ ने उसे घेर लिया। श्रीप्रकाश शुक्ला को सरेंडर करने को कहा गया लेकिन वह नहीं माना और फायरिंग शुरू कर दी। पुलिस की जवाबी फायरिंग में श्रीप्रकाश मारा गया। श्रीप्रकाश की मौत के बाद उसका खौफ भले ही खत्म हो गया था लेकिन जरायम की दुनिया में आज भी उसके नाम के चर्चे होते हैं।